Vasudevsharan Agrawal ka jivan Parichay, डॉक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन परिचय, साहित्य योगदान
दोस्तों इस पोस्ट में पुरातत्व और भारतीय संस्कृति की अमर व्याख्याता वासुदेव शरण अग्रवाल के जीवन परिचय, साहित्य योगदान और उनकी भाषा-शैली के बारे में जानेंगे। अक्सर बोर्ड परीक्षाओं में इनके जीवन परिचय या साहित्य योगदान या भाषा शैली के बारे में पूछा जाता है। अतः हम कर सकते हैं कि यह पोस्ट आपकी परीक्षा के लिए बहुत ही ज्यादा मददगार साबित हो सकती है। डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय, साहित्य योगदान और भाषा शैली निम्नलिखित दिया गया है-
बोर्ड परीक्षा में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न
- वासुदेव शरण अग्रवाल के जीवन परिचय पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- वासुदेव शरण अग्रवाल का साहित्य परिचय देते हैं उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
इन सभी प्रश्नो का उत्तर निम्नलिखित दिया गया।
जीवन-परिचय
पुरातत्त्व और भारतीय संस्कृति के अमर व्याख्याता वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई० में लखनऊ के मेरठ जिले का खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। इनका, बाल्यकाल अवस्था लखनऊ में ही व्यतीत हुआ था। बचपन से ही इनकी बुद्धि की प्रखरता अध्ययन के क्षेत्र में सहायक सिद्ध हुई। इसीलिए इन्होंने अपनी अल्पायु में ही काशी विश्वविद्यालय से बी०ए० और लखनऊ विश्वविद्यालय से एम०ए०, पी-एच० डी० और डी० लिट्० की उपाधियाँ प्राप्त कर लीं। इनके अध्ययन और पुरातत्त्व विभाग में विशेष रुचि के कारण ही ।
इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने ‘पुरातत्त्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग’ के अध्यक्ष पद का कार्य-भार सौंप दिया। बाद में ये आचार्य पद पर आसीन हुए। बहुत समय तक ये मथुरा तथा लखनऊ के संग्रहालयों के क्यूरेटर (संग्रहाध्यक्ष) भी रहे। माँ सरस्वती का यह अमर पुत्र हिन्दी- साहित्य की सेवा करता हुआ 27 जुलाई, 1967 ई० में भारत माँ के चरणों में हमेशा के लिए सो गया।
कृतियाँ
डॉ० अग्रवाल ने निबन्ध-रचना, शोध और सम्पादन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
निबंधों का संग्रह– पृथ्वी पुत्र , कल्पबृक्ष ,कल्पलता मातृ भूमि, भारत की एकता , वेद विद्या, कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति,उत्तर-ज्योति इत्यादि।
ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध – महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
आलोचना – पद्मावत की संजीविनी व्याख्या हर्ष चरित का संस्कृति अध्यन
शोध ग्रन्थ – नविन कालीन भारत, ‘पाणिनिकालीन भारत’ इनका विद्वत्तापूर्ण शोध ग्रन्थ है।
इसके अतिरिक्त इन्होंने पालि, संस्कृत और प्राकृत के भी कई ग्रन्थ सम्पादित किए हैं।
साहित्य-योगदान
डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने कविता-लेखन से अपना साहित्यिक जीवन प्रारम्भ करके अपनी रचनाओं में योग्यता, अनुभव एवं बुद्धि की असाधारण प्रतिभा द्वारा भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के अमिट चित्रों को चित्रित करते हुए अनुसन्धान की तीव्र प्रवृत्ति का भी स्पष्टतया समावेश कर दिया। ये लखनऊ तथा मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालयों में निरीक्षक, ‘केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग’, के संचालक और ‘राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली’ के अध्यक्ष रहे। आपने साहित्यिक जीवन में साहित्य के साथ-साथ पुरातत्त्व को भी अपने अध्ययन का विषय बनाया था। ये भाषा और साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित थे। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं में अपने निबन्ध लिखकर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। इनके लेख अनुसन्धानपूर्ण हैं तथा उनमें भारतीय संस्कृति की गहरी छाप मिलती है। आपने भारतीय संस्कृति के विभिन्न अंगों से संबंधित उत्कृष्ट निबंध लिखे हैं। यह केवल एक गद्य लेखक ही नहीं, अपितु काव्य प्रेमी भी थे। शोध निबंधों की एक मूल्यवान परंपरा को इन्होंने प्रारंभ किया था।
भाषा – शैली
भाषागत विशेषताएँ –
डॉ० अग्रवाल ने पालि, प्राकृत, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया था, अतः उनकी भाषा में पाण्डित्य की स्पष्ट छाप है। उनकी भाषा शुद्ध-परिमार्जित खड़ीबोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रचुरता होने पर भी भाषा में दुरूहता और क्लिष्टता नहीं आ पायी है। आपने भाषा की सरलता और सुबोधता का सर्वत्र ध्यान रखा है।
आपने अपनी भाषा में देशज शब्दों का प्रयोग किया है। आपका वाक्य-गठन व्यवस्थित और व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध है। भाषा में अभिधा और लक्षणा शब्दशक्तियों का प्रयोग हुआ है।
आपकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों तथा मुहावरों और कहावतों का अभाव है। कहीं-कहीं दर्शन और पुरातत्त्व के विषयों का विवेचन करते समय अप्रचलित और क्लिष्ट शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। आपने भाषा को व्यावहारिक बनाये रखने का निरन्तर प्रयत्न किया है। इस प्रकार उनकी भाषा उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करती है।
शैलीगत विशेषताएँ –
अग्रवाल जी एक अध्ययनशील चिन्तक, विवेकशील विचारक और सहृदय साहित्यकार थे। इनके निबन्धों में इनके गम्भीर व्यक्तित्व की छाप दिखाई पड़ती है। इनके कथन प्रामाणिक होते हैं। उनमें सर्वत्र आत्म-विश्वास की झलक दिखाई पड़ती है। अग्रवाल जी ने सामान्यतया विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है, जिसमें निम्न विशेषताएँ पायी जाती हैं-
सामासिकता– इनकी मौलिक रचनाओं में संस्कृत की सामासिक शैली का प्रयोग हुआ है। किसी बात को सूत्र रूप में रखकर फिर उसकी व्याख्या करते हैं। इसमें भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा गम्भीर होती है। वाक्य लम्बे-लम्बे हो गये हैं।
व्यासात्मकता– इनके भाष्यों में व्यास शैली का प्रयोग हुआ है। इसमें वाक्य अपेक्षाकृत छोटे और भाषा चलती हुई-सी है।
भावात्मकता– एक सहृदय लेखक होने के कारण इनके निबन्धों में भावात्मकता पायी जाती है। इस प्रकार की शैली में भाषा माधुर्य गुण से युक्त, सरल तथा व्यावहारिक पायी जाती है। वाक्य छोटे-छोटे होते हैं। ‘राष्ट्र का स्वरूप’ शीर्षक निबन्ध में भावात्मक शैली का प्रयोग दृष्टव्य है-
“धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण यह वसुन्धरा कहलाती है, उससे कौन परिचित न होना चाहेगा? लाखों-करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है।”
गवेषणात्मक शैली– अग्रवाल जी ने प्राचीन अनुसन्धान और पुरातत्त्व से सम्बन्धित रचनाओं में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसमें मौलिकता विद्यमान है। इस शैली की भाषा गम्भीर होते हुए भी कम क्लिष्ट है। इसमें वाक्य कहीं-कहीं लम्बे हैं, फिर भी प्रवाह और माधुर्य निरन्तर विद्यमान है।
उद्धरणों का प्रयोग– अग्रवाल जी अपने निबन्धों में प्रामाणिकता लाने के लिए तथा अपने कथन की पुष्टि के लिए उद्धरणों का प्रयोग करते हैं। उनके उद्धरण प्रायः संस्कृत-साहित्य से लिए गये होते हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न.1- वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- पुरातत्त्व और भारतीय संस्कृति के अमर व्याख्याता वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई० में लखनऊ के मेरठ जिले का खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था
प्रश्न.2- वासुदेव शरण अग्रवाल की रचनाएं कौन-कौन सी है?
उत्तर – इनकी रचनाएं निम्नलिखित है-
निबंधों का संग्रह– पृथ्वी पुत्र , कल्पबृक्ष ,कल्पलता मातृ भूमि, भारत की एकता , वेद विद्या, कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति,उत्तर-ज्योति इत्यादि।
ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध – महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
आलोचना – पद्मावत की संजीविनी व्याख्या हर्ष चरित का संस्कृति अध्यन
शोध ग्रन्थ – नविन कालीन भारत, ‘पाणिनिकालीन भारत’ इनका विद्वत्तापूर्ण शोध ग्रन्थ है।
इसके अतिरिक्त इन्होंने पालि, संस्कृत और प्राकृत के भी कई ग्रन्थ सम्पादित किए हैं।
प्रश्न.3- वासुदेव शरण अग्रवाल की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर – माँ सरस्वती का यह अमर पुत्र हिन्दी- साहित्य की सेवा करता हुआ 27 जुलाई, 1967 ई० में भारत माँ के चरणों में हमेशा के लिए सो गया।
प्रश्न.4- वासुदेव शरण अग्रवाल की गद्य शैली की विशेषताएं बताइए
उत्तर – इनकी गद्य शैली में भाषागत विशेषताएं एवं शैलीगत विशेषताएं देखने को मिलती है इसके बारे में उपरोक्त संपूर्ण जानकारी दी गई है।