Matter in Our Surroundings Class-9th Notes in Hindi – हमारे आस-पास के पदार्थ कक्षा -9 नोट्स
Matter in Our Surroundings के अन्तर्गत हम द्रव्य या पदार्थ, द्रव्य की भौतिक अवस्थाएं आदि के बारे में जानकारी लेंगे।
यदि आप कक्षा-9 के छात्र हैं और आप नोट्स खोज रहे हैं तो यह पोस्ट आपके लिए ही है। Matter in Our Surroundings Class-9th Notes in Hindi
Matter in Our Surroundings Class-9th Notes in Hindi के अंतर्गत सभी टापिक्स को सरल और संक्षिप्त में समझने का प्रयास किया गया है। Matter in Our Surroundings Class-9th Notes in Hindi
नीचे हमारे आसपास के पदार्थ (matter in our surroundings) का संक्षिप्त नोट्स दिया जा रहा है जिसे आप देखसकते हैं। Matter in Our Surroundings Class-9th Notes in Hindi
द्रव्य या पदार्थ
(Matter in Our Surroundings)
कोई वस्तु जो स्थान गिरती है और जिसमें संहित होती है, पदार्थ कहलाती है। पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है।
आयतन :
कोई वस्तु जितना स्थान गिरती है, वह घेरा हुआ स्थान उसका आयतन कहलाता है।
आयतन का अंतरराष्ट्रीय मात्रक घन मीटर (m³) है।
द्रव का आयतन सुधरता लीटर में मापा जाता है।
1 m³ = 10⁶ cm³
तथा 1 लीटर = 10³ cm³
1 m³ = 1000 litre
1 L = 1 dm³
पदार्थ के कणों के अभिलाक्षणिक गुण (Characteristic of particles of substance)
1.पदार्थ की कानों के बीच रिक्त स्थान होता है। इससे अंतराण्विक स्थान या आकाश कहते हैं।
2.पदार्थ के कारण निरंतर गति करते रहते हैं। जिसके कारण में गतिज ऊर्जा होती है।
द्रव्य का ताप बढ़ने पर उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
3.दो भिन्न पदार्थ का अपने आप (स्वत:) मिलना मिश्रण कहलाता है।
पदार्थ को गर्म करने पर विसरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
4.पदार्थ के कण एक दूसरे को आकर्षित करते हैं।
पदार्थ के कोणों के बीच एक बल कार्य करता है। इस बाल को अंतराण्विक आकर्षण बल या ससंजक बल कहते हैं।
इस बल के कारण पदार्थ की कण एक दूसरे से संयोजित रहते हैं। विभिन्न पदार्थों में यह बोल अलग-अलग होता है।
द्रव्य की भौतिक अवस्थाएं (Physical States of Substance)
द्रव्य तीन अवस्थाओं में पाया जाता है-
- ठोस (Solid)
- द्रव (liquid)
- गैस (Gas)
ठोस अवस्था ( Solid State)
द्रव की जिस अवस्था में उसका आकार तथा आयतन निश्चित होता है, ठोस अवस्था कहलाती है।
ठोस अवस्था में द्रव्य के कानों के बीच स्थान बहुत कम होता है। अर्थात कण एक दूसरे का बहुत निकट होते हैं।
कणों के बीच स्थान कम होने के कारण इस अवस्था के कणों के बीच आकर्षण बल बहुत अधिक होता है।
उदाहरण- लोहा, लकड़ी, पत्थर, बर्फ आदि ठोस है।
द्रव अवस्था (Liquid State)
द्रव की वह अवस्था, जिसमें उसका आयतन तो निश्चित होता है लेकिन आकार निश्चित नहीं होता है, द्रव अवस्था कहलाती है।
इस अवस्था में द्रव्य जी बर्तन में रखा जाता है उसे पत्र के जैसा आकार ग्रहण कर लेता है।
द्रव के कानों के बीच स्थान ठोस अवस्था की अपेक्षा अधिक होता है।
इस कारण द्रव के कणों का मध्य आकर्षण बल ठोस अवस्था की अपेक्षा कम होता है।
द्रव के कणों की गति की दर ठोस की अपेक्षा अधिक होता है।
अतः वह एक दूसरे के ऊपर फिसलते रहते हैं। इस कारण द्रवों में बहने का गुण होता है।
उदाहरण- जल, दूध, ग्लिसरीन, तेल, पारा आदि द्रव है।
गैस अवस्था (Gas State)
द्रव की वह अवस्था जिसमें उसका न तो आयतन निश्चित होता है और ना ही आकर निश्चित होता है, गैसीय अवस्था कहलाती है।
गैसीय अवस्था में द्रव्य को जीस पात्र में रखा जाता है। वह उसी पात्र का ही आयतन तथा आकार ग्रहण कर लेता है।
गैसीय अवस्था में द्रव्य के कणों के बीच स्थान ठोस तथा द्रव दोनों अवस्थाओं के अपेक्षा बहुत अधिक होता है।
परंतु कणों के बीच आकर्षण बल दोनों अवस्थाओं की तुलना में बहुत कम होता है।
इस अवस्था में कणों की गति की दर बहुत अधिक होती है।
अतः गैसों के कण सभी दिशाओं में अनियमित रूप से गति करते रहते हैं।
इसके कारण यह कण परस्पर तथा बर्तन की दीवारों से अनवरत रूप से टकराते रहते हैं।
उदाहरण- वायु, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, अमोनिया आदि।
महत्वपूर्ण बिंदु
- द्रव तथा गैस में बहने का गुण होता है। अतः इन्हें तरल पदार्थ कहते हैं।
- कणों के बीच रिक्त स्थान का बढ़ता हुआ क्रम – ठोस < द्रव < गैस
- कणों के बीच आकर्षण बल का बढ़ता हुआ क्रम – गैस < द्रव < ठोस
- कणों की गति की दर का बढ़ता हुआ क्रम – ठोस < द्रव < गैस
- द्रव में ठोस, द्रव और गैस तीनों का विसरण संभव है।
- वातावरण की गैसे ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड जल में खुल जाती है।
- जल में खुली ऑक्सीजन के कारण जलीय जंतु श्वास लेकर जीवित रहते हैं।
- जल में घुली कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के लिए आवश्यक होता है।
- गैसों की संपीड्यता ठोस और द्रव की अपेक्षा बहुत अधिक होता है।
- घरेलू उपयोग वाली LPG का पूरा नाम Liquid Petroleum Gas है
- वाहनों में प्रयुक्त CNG का पूरा नाम Compressed Natural Gas है।
गलन (Melting)
किसी ठोस को गर्म करने पर उसका का अवशोषण होता है जिससे उसका तप बढ़ता है।
ठोस का ताप बढ़ते रहने पर एक स्थिति ऐसी आती है की ठोस द्रव में बदलने लगता है।
इस स्थिति में ऊष्मा देते रहने पर ताप में तब तक वृद्धि नहीं होता है जब तक की संपूर्ण ठोस द्रव में नाम बदल जाए।
इस क्रिया को गलन, द्रवण या पिघलना कहते हैं तथा इस निश्चित तप को गलनांक कहते हैं।
“वायुमंडलीय दाब पर 1 क ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितना उसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे संगलन की प्रसुप्त या गुप्त ऊष्मा कहते हैं।”
गलनांक पर अपद्रव्यों का प्रभाव (effect of impurities on melting point)
किसी ठोस में अपद्रव्य मिलने से उसका गलनांक कम हो जाता है।
गलनांक पर दाब का प्रभाव (effect of pressure on melting point)
जब ठोस द्रव के रूप में परिवर्तित होता है तो सामान्यतः उसका आयतन बढ़ जाता है,
परंतु कुछ ठोस (जैसे बर्फ) ऐसे भी हैं जिनके गलने पर उनके आयतन काम हो जाता है।
जिन ठोस पदार्थ के गलने पर उनके आयतन में वृद्धि होती है, दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक बढ़ जाता है।
जिन ठोस पदार्थ के गलने पर उनके आयतन में कमी होती है, दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक कम हो जाता है।
हिमीकरण (Freezing)
जब किसी द्रव को ठंडा करते रहते हैं तो एक स्थिति ऐसी आती है कि वह हमने लगता है अर्थात ठोस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है।
“द्रव की ठोस अवस्था में परिवर्तन की क्रिया को हिमीकरण या जमना कहते हैं।”
यह क्रिया गैलन क्रिया के विपरीत है।
जिस ताप पर द्रव का ठोस अवस्था में परिवर्तन होता है उसे हिमांक कहते हैं।
हिमांक सामान्यतः गलनांक के बराबर होता है।
गलनांक किसी द्रव्य का लाक्षणिक गुण होता है जबकि हिमांक उसका लक्षण गुण नहीं माना जाता है।
क्वथन (Boiling)
जब किसी द्रव को गर्म किया जाता है तो उसका ताप बढ़ता है।
ताप बढ़ने पर उसके कानों की गतिज ऊर्जा बढ़ती है।
इस कारण उसके कानों के बीच दूरी लगातार बढ़ती जाती है तथा उनके बीच का आकर्षण बल क्रमशः घटता जाता है।
किसी द्रव (जैसे जल) का ताप निरंतर बढ़ने से एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि उसके कारण एक दूसरे के आकर्षण से स्वतंत्र होने लगते हैं तथा गैसीय अवस्था में परिवर्तित होने लगते हैं।
“द्रव को गर्म करने पर एक निश्चित ताप पर तेजी से वश में बदलना कोथा कहलाता है”
“वह निश्चित तप जिस पर कोई द्रव वश में बदलता है उसका क्वथनांक कहलाता है।”
Note :
- द्रव का क्वथनांक वह निश्चित तप है जिस पर उसका वाष्प दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर हो जाता है और सारे द्रव में बुलबुले उठते लगते हैं।
- वायुमंडलीय दाब पर 1 किलोग्राम द्रव को उसकी क्वथनांक पर वाष्प में बदलने के लिए जितनी उष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे उसकी गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
उर्ध्वपातन (Sublimation)
कुछ ठोस पदार्थ ऐसे होते हैं जो तेजी से गर्म करने पर बिना द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए सीधा वास्तव स्थान परिवर्तित हो जाते हैं इस क्रिया को उर्ध्वपातन कहते हैं।
वाष्पो को ठंडा करने पर प्राप्त ठोस को उर्धवपातज कहते।
उदाहरण : नौसादर (अमोनियम क्लोराइड), आयोडीन तथा कपूर (कैम्फर) तेजी से गर्म करने पर बिना द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए सीधा वस्तु अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं।
संघनन (Condensation)
किसी पदार्थ की वाष्पो को ठंडा करने पर वे द्रव रूप में परिवर्तित हो जाती है। इस क्रिया को संघनन कहते हैं।
वाष्पीकरण (Evaporation)
क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
उदाहरण : जब थोड़े से जल को एक प्लेट में रखकर वायु में रख दिया जाता है तो कुछ समय बाद जल लुप्त हो जाता है।
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors to effected of evaporation)
1.वातावरण का तापमान
वातावरण का तापमान बढ़ने पर कानों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है अतः वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
2.सतह का क्षेत्रफल
द्रव की सट्टा का क्षेत्रफल बढ़ाने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
जैसे- फैले हुए कपड़े जल्दी सूखते हैं। कब की अपेक्षा प्लेट में चाय जल्दी ठंडी होती है।
3.वायुमंडल की आर्द्रता
वायुमंडल में उपस्थित जल वाष्प की मात्रा को वायु की आर्द्रता कहते हैं।
किसी निश्चित तापमान पर वायुमंडल में आर्द्रता बढ़ाने पर वाष्पन की दर घट जाती है।
यही कारण है कि बादलों वाले या वर्षा के दिन गीले कपड़े शुष्क गर्म मौसम की अपेक्षा देर से सकते हैं।
4.वायु की गति
वायु का प्रवाह तेज होने पर वष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
यही कारण तेज हवा चलने पर गीले कपड़े जल्दी सूख जाते हैं।
Note :
अब वैज्ञानिक पद्धति की पांच अवस्थाओं की खोज कर चुके हैं- बोस आइंस्टाइन कंडनसेट, ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा।
Some Important Questions :
प्रश्न-1. गर्म, शुष्क दिन में कूलर अधिक ठंडा क्यों करता है?
उत्तर- गर्म, शुष्क दिनों में वायुमंडल में जलवाष्प कम होता है जिसके कारण वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है। जब कूलर चलता है,
जो उसका जल अपनी वाष्पीकरण की ऊर्जा अपने वातावरण से लेता है तथा तेजी से वाष्पित होता है, अतः कूलर अधिक ठंडा करता है।
प्रश्न-2. गर्मियों में घड़े का जल ठण्डा क्यों होता है?
उत्तर- गर्मियों में वायुमण्डल में जलवाष्प कम होती है जो वाष्पन की दर को बढ़ा देती है।
घड़े में छोटे-छोटे रन्ध्र होते हैं जिनसे पानी धीरे-धीरे रिसता रहता है
जो वाष्पन के लिए जल से अधिक ऊष्मा लेता है जिससे घड़े का पानी ठण्डा हो जाता है।
संक्षेप में, घड़े का जल वाष्पीकरण के कारण ठण्डा होता है।
प्रश्न-3. ऐसीटोन/पेट्रोल या इत्र डालने पर हमारी हथेली ठण्डी क्यों हो जाती है?
उत्तर- ऐसीटोन/पेट्रोल या इत्र वाष्पशील पदार्थ हैं जब इन्हें हथेली पर रखते है तो हाथ की गर्मी के कारण इनका वाष्पन तेज हो जाता है।
इसके लिए ये ऊष्मीय ऊर्जा हथेली से लेते हैं जिससे वह ठण्डी हो जाती है।
प्रश्न-4. कप की अपेक्षा प्लेट से हम गर्म दूध या चाय जल्दी क्यों पी लेते हैं?
उत्तर- कप में दूध या चाय की सतह का क्षेत्रफल कम होता है जिससे वाष्पन धीमा होता है और वह देर में ठण्डी होती है।
अतः पीने में देर लगती है। लेकिन प्लेट में डालने पर चाय/दूध की सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है,
जिससे वाष्पन तेजी से होता है और उसे ठण्डा होने में कम समय लगता है। अंतः पीने में देर नहीं लगती।
प्रश्न-5. गर्मियों में हमें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर- गर्मियों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए क्योंकि वे पसीने को अवशोषित कर लेते हैं।
इस प्रकार पसीना टपकता नहीं है। कपड़ों द्वारा सोखा गया पसीना वाष्पीकृत होता है।
वाष्पीकरण के लिए ऊष्मा शरीर से ली जाती है। फलस्वरूप शरीर का तापमान कम हो जाता है और हमें शीतलता अनुभव होती है।